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पृथ्वीराज चौहान का इतिहास

 पृथ्वीराज चौहान, भारतीय इतिहास के अद्वितीय राजा में से एक, जिनका इतिहास एक महाकाव्य सा है। 

वे एक सम्राट थे, जिनकी वीरता और राजनीतिक बुद्धिमत्ता ने उन्हें भारतीय इतिहास में अद्वितीय स्थान दिलाया।

पृथ्वीराज का इतिहास हमें एक महान योद्धा, साम्राज्य, और सामाजिक नेता का परिचय कराता है। इनका शासनकाल, उनकी वीरता से भरा हुआ है, जिसने उन्हें दक्षिण एशिया में अद्वितीय स्थान पर पहुंचाया।

इस ब्लॉग में, हम पृथ्वीराज चौहान के उच्चकुलीन साम्राज्य, उनकी योद्धा धरोहर, और उनके समझदार राजनीतिक निर्णयों को विशेष रूप से देखेंगे। यह यात्रा हमें एक महान योद्धा और राजा की अद्वितीय जीवनी से रूबरू कराएगी, जिनकी कहानी हमारे राष्ट्रीय गौरव को नए आयामों तक ले जाती है।


पृथ्वीराज को "राय पिथौरा" भी कहा जाता था और वे बचपन से ही एक प्रशिक्षित योद्धा थे। उन्होंने युद्ध के कई कलाओं को सीखा था और बाल्यकाल से ही शब्दभेदी बाण विद्या का अभ्यास किया था। पृथ्वीराज चौहान के जीवन पर आधारित एक फिल्म भी जल्द ही रिलीज होने वाली है। इस लेख में, हम आपको पृथ्वीराज चौहान के जीवन का इतिहास प्रस्तुत कर रहे हैं, जिसे आपको अंत तक जरूर पढ़ना चाहिए।

 

पृथ्वीराज चौहान, धरती के महान शासकों में से एक थे, और उनका जन्म 1149 में हुआ था। पृथ्वीराज के माता-पिता, महाराज सोमेश्वर और कपूरी देवी थे, और उनका जन्म उनके माता-पिता के विवाह के 12 वर्षों बाद हुआ था। इस घड़ी का जन्म उनके राज्य में खलबली का कारण बन गया था, और उनके जन्म से ही उन पर षड्यंत्र रचे जाने लगे, लेकिन वे इन संघर्षों को पार कर गए।

पृथ्वीराज के जीवन का सबसे महत्वपूर्ण चरण उनकी 11 वर्ष की आयु में आया, जब उनके पिता का निधन हो गया। इसके बाद भी, वे अपने दायित्वों का सख्ती से पालन किया और अन्य राजाओं को पराजित करके अपने राज्य का विस्तार किया।

पृथ्वीराज चौहान के बचपन के दोस्त, चंदबरदाई, उनके लिए भाई से कम नहीं थे। चंदबरदाई तोमर वंश के राजा अनंगपाल की बेटी के पुत्र थे। बाद में, चंदबरदाई दिल्ली के शासक बने और उन्होंने पृथ्वीराज चौहान के सहायता से पिथोरगढ़ का निर्माण किया, जो आज भी दिल्ली में पुराने किले के नाम से प्रसिद्ध है।

पृथ्वीराज चौहान का दिल्ली पर उत्तराधिकार

अजमेर की महारानी कपुरीदेवी अपने पिता अंगपाल की एकमात्र संतान थीं। उनके सामने एक महत्वपूर्ण समस्या थी कि उनकी मृत्यु के बाद, उनके शासन का उत्तराधिकार कौन संभालेगा। उन्होंने अपनी पुत्री और दामाद के सामने रखा कि उनकी दोहित्र को उत्तराधिकारी बनाया जाए, और इसके बाद युवराज पृथ्वीराज को उनका उत्तराधिकारी घोषित किया गया। सन् 1166 में महाराज अंगपाल की निधन के बाद, पृथ्वीराज चौहान को दिल्ली की गद्दी पर राज्याभिषेक किया गया और उन्हें दिल्ली का प्रशासन सौंपा गया।

पृथ्वीराज चौहान और संयोगिता की प्रेम कहानी

पृथ्वीराज चौहान और संयोगिता की प्रेम कहानी भारत के इतिहास की सबसे प्रसिद्ध प्रेम कहानियों में से एक है। यह एक ऐसा प्रेम है जो बिना मिले ही, केवल चित्र देखकर ही पनपा।

 पथ्वीराज चौहान उस समय दिल्ली और अजमेर के राजा थे। वे एक कुशल योद्धा और एक विद्वान व्यक्ति थे। संयोगिता कन्नौज के राजा जयचंद की बेटी थी। वह एक सुंदर और बुद्धिमान राजकुमारी थी।

 एक दिन, पृथ्वीराज के दरबार में एक चित्रकार आया। उसने पृथ्वीराज का चित्र बनाया, और वह चित्र संयोगिता के महल में पहुंचा। संयोगिता ने जब यह चित्र देखा तो वह पृथ्वीराज के रूप और व्यक्तित्व से मोहित हो गई।

 संयोगिता ने अपने महल में एक स्वयंवर आयोजित किया। इसमें पूरे देश से राजाओं को आमंत्रित किया गया, लेकिन पृथ्वीराज को छोड़कर। जयचंद पृथ्वीराज से जलते थे, और वह चाहते थे कि पृथ्वीराज को नीचा दिखाया जाए। इसलिए, उन्होंने स्वयंवर में पृथ्वीराज की मूर्ति द्वारपाल के स्थान पर रख दी।

 स्वयंवर में, संयोगिता ने पृथ्वीराज की मूर्ति को वरमाला पहनाई। यह देखकर जयचंद को बहुत गुस्सा आया। उन्होंने पृथ्वीराज और संयोगिता को पकड़ने के लिए सेना भेजी। लेकिन पृथ्वीराज ने संयोगिता को भगाकर अपनी रियासत ले आए।

पृथ्वीराज और संयोगिता का विवाह दिल्ली में हुआ। उनका विवाह एक ऐतिहासिक घटना थी। इस विवाह ने हिंदू और मुस्लिम समुदायों के बीच एकता की भावना को बढ़ावा दिया।

 पृथ्वीराज और संयोगिता का विवाह एक सफल विवाह था। वे एक-दूसरे से बहुत प्यार करते थे। लेकिन उनका विवाह लंबे समय तक नहीं चला। 1192 में, तराइन के दूसरे युद्ध में, पृथ्वीराज को मुहम्मद गौरी ने हराया और बंदी बना लिया। गौरी ने पृथ्वीराज की आंखों में तीर मारकर उनकी हत्या कर दी।

 संयोगिता पृथ्वीराज की मृत्यु से बहुत दुखी हुई। उसने कुछ ही दिनों बाद आत्महत्या कर ली।

पृथ्वीराज चौहान और संयोगिता की प्रेम कहानी आज भी भारत के लोगों के दिलों में जिंदा है। यह एक ऐसी कहानी है जो प्रेम, साहस और बलिदान की याद दिलाती है।

 इस कहानी की सत्यता पर कुछ सवाल

 पृथ्वीराज चौहान और संयोगिता की प्रेम कहानी एक लोकप्रिय कहानी है। हालांकि, इस कहानी की सत्यता पर कुछ सवाल उठते हैं।

 कुछ इतिहासकारों का मानना ​​है कि संयोगिता का स्वयंवर वास्तव में हुआ ही नहीं था।

कुछ इतिहासकारों का मानना ​​है कि पृथ्वीराज और संयोगिता का विवाह एक राजनीतिक समझौता था, कि प्रेम का परिणाम।

हालांकि, इन सवालों के बावजूद, पृथ्वीराज चौहान और संयोगिता की प्रेम कहानी एक लोकप्रिय कहानी है जो आज भी लोगों को आकर्षित करती है।

पृथ्वीराज चौहान ने एक विशाल सेना

पृथ्वीराज चौहान ने एक विशाल सेना का संचालन किया, जिसमें 3 लाख सैनिक और 300 हाथी थे। इसकी सजग संगठनशीलता ने उन्हें कई जीत हासिल करने और राज्य का विस्तार करने का मौका दिया। हालांकि, कुशल घुड़सवारों की कमी, जयचंद्र की धोखाधड़ी और साथी राजपूत राजाओं के समर्थन की कमी ने पृथ्वीराज को मुहम्मद गौरी के खिलाफ हार का सामना करना पड़ा। एक शानदार सेना, जो कभी शक्ति का प्रतीक थी, आखिरकार वफादारी और रणनीतिक अभावों के जटिल संबंधों के चक्कर में हार गई।


मुहम्मद गौरी से युद्ध और पृथ्वीराज चौहान की मृत्यु का सच 

एक समय की बात है, जब पृथ्वीराज चौहान ने अपने राज्य का विस्तार करने का निर्णय लिया। उन्होंने इस उद्देश्य के साथ पंजाब को चुना, जो कि मुहम्मद शाबुद्दीन गौरी के शासन में था। गौरी भटिंडा से अपने राज्य को शासन कर रहा था। पृथ्वीराज ने अपनी बड़ी सेना के साथ गौरी पर हमला करने का निर्णय किया। इस युद्ध में, पृथ्वीराज ने हांसी, सरस्वती, और सरहिंद पर कब्जा किया। लेकिन बीच में अनहिलवाड़ा में विद्रोह हुआ और इसके चलते पृथ्वीराज को जाना पड़ा और सरहिंद का किला हार गया। पृथ्वीराज ने बहादुरी से दुश्मनों के छक्के छुड़ाए, लेकिन युद्ध समाप्त हो गया और इसे प्रमुखतः असफल ठहराया गया। इस युद्ध में, उन्होंने करीब 7 करोड़ रुपये की संपदा हासिल की, जिसे उन्होंने अपने सैनिकों में बांट दिया।

1192 में तराइन के मैदान में हुआ मुहम्मद गौरी और पृथ्वीराज चौहान का दूसरा युद्ध भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण घटना था, जो उत्तर भारत में इस्लामी शासन की शुरुआत करने का कारण बनी।

 

पृथ्वीराज चौहान, जो एक कुशल योद्धा थे, ने पहले युद्ध में गौरी को पराजित किया था। हालांकि, दूसरे युद्ध में, गौरी ने अपनी सेना को पुनर्गठित किया और महत्वपूर्ण जीत हासिल की।

 

इस जीत ने उत्तर भारत में हिंदू शक्तियों को कमजोर कर दिया, और गौरी ने दिल्ली और अजमेर को अपने अधीन कर लिया। उसने जल्दी ही पूरे उत्तर भारत पर अपना नियंत्रण स्थापित कर लिया।

 

इस युद्ध ने भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण घटना को प्रमोट किया और इसके परिणामस्वरूप भारत के भविष्य को नए रास्ते पर बदल दिया।

पृथ्वीराज चौहान की मृत्यु कैसे हुई थी ?

इनके मृत्यु के बारे में सबसे प्रसिद्ध कहानी निम्नलिखित है :

गौरी से युध्द के पश्चात पृथ्वीराज को बंदी बनाकर उनके राज्य ले जाया गया. वहा उन्हे यतनाए दी गयी तथा पृथ्वीराज की आखो को लोहे के गर्म सरियो द्वारा जलाया गया, इससे वे अपनी आखो की रोशनी खो बैठे. जब पृथ्वीराज से उनकी मृत्यु के पहले आखरी इच्छा पूछी गयी, तो उन्होने भरी सभा मे अपने मित्र चंदबरदाई के शब्दो पर शब्दभेदी बाण का उपयोग करने की इच्छा प्रकट की. और इसी प्रकार चंदबरदई द्वारा बोले गए दोहे का प्रयोग करते हुये उन्होने गौरी की हत्या भरी सभा मे कर दी. इसके पश्चात अपनी दुर्गति से बचने के लिए दोनों ने एक दूसरे की जीवन लीला भी समाप्त कर दी. और जब संयोगिता ने यह खबर सुनी, तो उसने भी अपना जीवन समाप्त कर लिया.

 

इस कथन की जांच करने के लिए हमने गूगल का सहारा लिया और  इसके आधार पर, हमें निम्नलिखित तथ्यों पर विचार करना होगा:

  • पृथ्वीराज चौहान और मुहम्मद गौरी के बीच तराइन का दूसरा युद्ध 1192 में लड़ा गया था।
  • युद्ध में, गौरी ने पृथ्वीराज को हराया और उन्हें बंदी बना लिया।
  • पृथ्वीराज को गजनी ले जाया गया, जहां उन्हें कैद में रखा गया।
  • पृथ्वीराज की आंखों को लोहे के गर्म सरियों से जलाया गया, जिससे वे अंधे हो गए।
  • पृथ्वीराज को गौरी के दरबार में पेश किया गया।
  • पृथ्वीराज ने चंदबरदाई द्वारा लिखे एक दोहे का उपयोग करके गौरी की हत्या कर दी।
  • पृथ्वीराज और चंदबरदाई ने एक-दूसरे की हत्या कर आत्महत्या कर ली।
  • संयोगिता ने यह खबर सुनकर आत्महत्या कर ली।

इन तथ्यों के आधार पर, यह कथन काफी हद तक सही है। हालांकि, कुछ विवरणों में विसंगतियां हैं।

  • कथन में कहा गया है कि पृथ्वीराज को युद्ध के बाद तुरंत बंदी बना लिया गया था। हालांकि, कुछ इतिहासकारों का मानना ​​है कि पृथ्वीराज को कुछ समय तक स्वतंत्र रहने दिया गया था, और उन्होंने अपने राज्य को फिर से जीतने के लिए प्रयास किया।
  • कथन में कहा गया है कि पृथ्वीराज को गजनी में कैद किया गया था। हालांकि, कुछ इतिहासकारों का मानना ​​है कि उन्हें गजनी के बाहर किसी अन्य स्थान पर कैद किया गया था।
  • कथन में कहा गया है कि पृथ्वीराज और चंदबरदाई ने एक-दूसरे की हत्या कर आत्महत्या कर ली। हालांकि, कुछ इतिहासकारों का मानना ​​है कि पृथ्वीराज ने चंदबरदाई की हत्या की, और फिर उन्होंने खुद को मार डाला।

कुल मिलाकर, यह कथन पृथ्वीराज चौहान की मृत्यु के बारे में एक सटीक विवरण प्रदान करता है। हालांकि, कुछ विवरणों में विसंगतियां हैं, जो इतिहासकारों के बीच बहस का विषय हैं।

यहां कुछ अतिरिक्त विवरण दिए गए हैं जो इस कथन को और अधिक सटीक बनाने में मदद कर सकते हैं:

  • पृथ्वीराज चौहान को युद्ध के बाद तुरंत बंदी नहीं बनाया गया था। उन्हें कुछ समय तक स्वतंत्र रहने दिया गया था, और उन्होंने अपने राज्य को फिर से जीतने के लिए प्रयास किया। हालांकि, उन्हें अंततः गौरी की सेना द्वारा पराजित किया गया और उन्हें बंदी बना लिया गया।
  • पृथ्वीराज को गजनी में कैद नहीं किया गया था। उन्हें गजनी के बाहर किसी अन्य स्थान पर कैद किया गया था, शायद लाहौर या मुल्तान में।
  • पृथ्वीराज और चंदबरदाई ने एक-दूसरे की हत्या कर आत्महत्या कर ली। हालांकि, कुछ इतिहासकारों का मानना ​​है कि पृथ्वीराज ने चंदबरदाई की हत्या की, और फिर उन्होंने खुद को मार डाला।

यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि पृथ्वीराज चौहान की मृत्यु के बारे में कोई प्रत्यक्ष ऐतिहासिक रिकॉर्ड नहीं है। सभी जानकारी हमें ऐतिहासिक ग्रंथों और किंवदंतियों से मिलती है। इसलिए, इस कथन में कुछ विसंगतियां होना स्वाभाविक है। हालांकि, यह एक सटीक विवरण प्रदान करता है जो पृथ्वीराज चौहान की मृत्यु के बारे में हमारे ज्ञान को बढ़ाता है।

 निष्कर्ष:

पृथ्वीराज चौहान के जीवन के बारे में कई अलग-अलग कहानियां और विवरण हैं। कुछ स्रोतों के अनुसार, उन्होंने मुहम्मद गौरी के साथ कुल 18 युद्ध लड़े, जिनमें से उन्होंने 17 में जीत हासिल की। हालांकि, अन्य स्रोतों का कहना है कि उनके बीच केवल दो युद्ध हुए, जिनमें से पहले में पृथ्वीराज चौहान विजयी रहे, जबकि दूसरे में उन्हें पराजित होना पड़ा।

पृथ्वीराज चौहान के जीवन के बारे में अधिक जानकारी प्राप्त करने के लिए, हमें और अधिक शोध करने की आवश्यकता है। यदि आपके पास कोई अतिरिक्त जानकारी है, तो कृपया हमें कमेंट बॉक्स में बताएं।


FAQ

Q: पृथ्वीराज चौहान कहाँ के राजा थे?

उत्तर: पृथ्वीराज चौहान एक क्षत्रीय राजा थे, जो 11 वीं शताब्दी में 1178-92 तक एक बड़े साम्राज्य के राजा थे। वे उत्तरी अमजेर और दिल्ली में राज करते थे।

 

Q: पृथ्वीराज चौहान का जन्म कब और कहाँ हुआ था?

उत्तर: पृथ्वीराज चौहान का जन्म सन 1166 में गुजरात में हुआ था।

 

Q: पृथ्वीराज चौहान की मृत्यु कैसे हुई?

उत्तर: युद्ध के पश्चात्, पृथ्वीराज को बंदी बनाकर उनके राज्य में ले जाया गया, और वहीं पर यातना के दौरान उनकी मृत्यु हो गई।

 

Q: पृथ्वीराज की मृत्यु के बाद संयोगिता का क्या हुआ?

उत्तर: कहा जाता है कि संयोगिता ने पृथ्वीराज की मृत्यु के बाद, लाल किले में जोहर कर लिया था, जिसका मतलब होता है कि उन्होंने गरम आग के कुंड में कूदकर जीवन त्याग दिया।

 

Q: पृथ्वीराज चौहान का भारतीय इतिहास में क्या योगदान रहा?

उत्तर: पृथ्वीराज चौहान एक महान हिन्दू राजपूत राजा थे, जो मुगलों के खिलाफ हमेशा एक ताकतवर राजा बनकर खड़े रहे। उनका राज्य उत्तर से लेकर भारत में कई जगहों पर फैला हुआ था।

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