चन्द्रगुप्त मौर्य
चन्द्रगुप्त मौर्य : भारतीय इतिहास के सबसे प्रतापी सम्राट
चन्द्रगुप्त मौर्य (345-297 ईसा पूर्व) प्राचीन भारत के सबसे महान सम्राटों में से एक थे। उन्होंने मौर्य साम्राज्य की स्थापना की, जो उस समय का सबसे बड़ा साम्राज्य था। चन्द्रगुप्त ने अपने साम्राज्य का विस्तार किया और उसे एक मजबूत शक्ति में बदल दिया। उन्होंने यवनों को हराया और भारत की स्वतंत्रता को सुरक्षित किया। आज के इस लेख के जरिये उनके जीवन से जुड़े कुछ जानकारी साझा करेंगे।
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1. प्रस्तावना:
चन्द्रगुप्त मौर्य, प्राचीन भारत के महान सम्राटों में से एक थे। उन्होंने मौर्य राजवंश की स्थापना की और पूरे भारत को एक साम्राज्य के अधीन किया। उनका साम्राज्य भारतीय इतिहास का एक महत्वपूर्ण अध्याय है और उनके योगदान को महत्वपूर्ण रूप से माना जाता है।
2. प्रारंभिक जीवन :
चन्द्रगुप्त मौर्य का जन्म 345 ईसा पूर्व में मगध के पाटलिपुत्र में हुआ था। उनके पिता का नाम सर्वार्थसिद्धी मौर्य और माता का नाम मूरा मौर्य था। चन्द्रगुप्त बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि और साहसी थे। उन्होंने अपने गुरु चाणक्य से शिक्षा प्राप्त की, जिन्होंने उन्हें एक महान शासक बनने के लिए तैयार किया।
3. चाणक्य के साथ साम्राज्य निर्माण:
चन्द्रगुप्त ने अपने गुरु चाणक्य के साथ मिलकर एक नया साम्राज्य बनाने का प्रयास किया। चाणक्य के मार्गदर्शन में, उन्होंने राज्यचक्र के सिद्धांतों को अपनाया, बड़ी सेना का निर्माण किया, और अपने साम्राज्य की सीमाओं का विस्तार किया।
4. सम्राट के रूप में चन्द्रगुप्त मौर्य:
चन्द्रगुप्त ने 321 ईसा पूर्व में मगध के सिंहासन पर चढ़कर मौर्य साम्राज्य की स्थापना की। उन्होंने एक कुशल और दृढ़निश्चयी शासक के रूप में अपनी पहचान बनाई। उन्होंने अपने साम्राज्य में शांति और व्यवस्था बनाए रखी, और अपने प्रजा के कल्याण के लिए अनेक कार्य किए।
सिकंदर के आक्रमण के बाद:
सिकंदर के आक्रमण के बाद भारत में एक राजनीतिक उथल-पुथल की स्थिति पैदा हो गई। सिकंदर ने उत्तर-पश्चिम भारत में अपनी सेना का विस्तार किया और कई छोटे-छोटे राज्यों को जीत लिया। लेकिन सिकंदर की मृत्यु के बाद, उसकी सेना ने विद्रोह कर दिया और भारत से वापस लौट गई।
आचार्य चाणक्य के सहायता से चंद्रगुप्त मौर्य ने नंद वंश को उखाड़ फेंका और मौर्य साम्राज्य की स्थापना की। चंद्रगुप्त ने अपने साम्राज्य का विस्तार किया और उसे एक मजबूत शक्ति में बदल दिया। उन्होंने यवनों को हराया और भारत की स्वतंत्रता को सुरक्षित किया। सिकंदर के आक्रमण के बाद भारत में हुए परिवर्तनों को निम्नलिखित बिंदुओं में संक्षेपित किया जा सकता है:
नंद वंश का अंत: सिकंदर के आक्रमण के बाद, नंद वंश के अत्याचारों से जनता त्रस्त हो गई थी। चंद्रगुप्त मौर्य ने इस अवसर का फायदा उठाकर नंद वंश को उखाड़ फेंका और मौर्य साम्राज्य की स्थापना की। यवनों पर विजय: चंद्रगुप्त मौर्य ने अपने साम्राज्य का विस्तार करते हुए उत्तर-पश्चिम भारत में यवनों को हराया और उन्हें भारत से बाहर निकाल दिया। इस विजय ने भारत की स्वतंत्रता को सुरक्षित किया। साम्राज्य का विस्तार: चंद्रगुप्त ने अपने साम्राज्य का विस्तार पूर्व में बंगाल और दक्षिण में गोदावरी नदी तक किया। इससे भारत का एकता और अखंडता को बढ़ावा मिला।
6. धनानंद और सेल्यूकस के खिलाफ युद्ध:
चंद्रगुप्त मौर्य ने अपने जीवन में दो महत्वपूर्ण युद्ध लड़े। पहला युद्ध उन्होंने धनानंद के खिलाफ लड़ा, जो उस समय उत्तर भारत पर शासन कर रहा था। दूसरा युद्ध उन्होंने सेल्यूकस निकेटर के खिलाफ लड़ा, जो सिकंदर महान का उत्तराधिकारी था।
धनानंद के खिलाफ युद्ध
चंद्रगुप्त ने अपने राज्यारोहण के बाद नंद वंश को उखाड़ फेंका, जो उस समय उत्तर भारत पर शासन कर रहा था। नंद वंश के अत्याचारों से जनता त्रस्त थी, इसलिए चंद्रगुप्त के नेतृत्व में उनके खिलाफ एक जन विद्रोह हुआ। इस विद्रोह में चंद्रगुप्त विजयी हुए और नंद वंश का अंत हो गया।
धनानंद एक शक्तिशाली शासक था और उसने चंद्रगुप्त को चुनौती दी। दोनों पक्षों के बीच कई युद्ध हुए। अंत में, चंद्रगुप्त ने धनानंद को हराया और उसे मार डाला। इस जीत के साथ ही चंद्रगुप्त मौर्य ने मौर्य साम्राज्य की स्थापना की।
सेल्यूकस निकेटर के खिलाफ युद्ध
सिकंदर महान ने अपने उत्तराधिकारी के रूप में सेल्यूकस निकेटर को नियुक्त किया था। सेल्यूकस ने अपने साम्राज्य का विस्तार करते हुए उत्तर-पश्चिम भारत में आक्रमण किया। उसने कई भारतीय राज्यों को जीत लिया, जिनमें पंजाब, सिंधु और कश्मीर शामिल थे।
चंद्रगुप्त ने सेल्यूकस के आक्रमण का विरोध किया। दोनों पक्षों के बीच कई युद्ध हुए। अंत में, चंद्रगुप्त ने सेल्यूकस को पराजित किया और उसे भारत से बाहर कर दिया। इस जीत के साथ ही चंद्रगुप्त ने भारत की स्वतंत्रता को सुरक्षित किया।
चंद्रगुप्त ने सेल्यूकस के साथ एक संधि की, जिसके अनुसार:
सेल्यूकस ने पंजाब, सिंधु और कश्मीर के भारतीय राज्यों को चंद्रगुप्त को दे दिए।
चंद्रगुप्त ने सेल्यूकस को पांच सौ हाथियों को लौटा दिया।
सेल्यूकस ने बेटी का विवाह चन्द्रगुप्त से करवा दिया।
दोनों पक्षों ने एक-दूसरे के साथ शांति और मित्रता की शपथ ली।
सेल्यूकस ने मेगास्थनीज को दूत के रूप में चन्द्रगुप्त के दरबार में भेजा।
इस संधि ने भारत और यूनान के बीच व्यापार और संस्कृति के आदान-प्रदान को बढ़ावा दिया।
7.साम्राज्य का विस्तार:
चन्द्रगुप्त ने अपने साम्राज्य का विस्तार उत्तर में अफगानिस्तान, बलूचिस्तान और सिंध से लेकर दक्षिण में कर्नाटक तक किया। उन्होंने पूर्व में बिहार, बंगाल और उड़ीसा तक अपने साम्राज्य का विस्तार किया। चन्द्रगुप्त के साम्राज्य का विस्तार लगभग 5 मिलियन वर्ग किलोमीटर था, जो उस समय के सबसे बड़े साम्राज्यों में से एक था।
चन्द्रगुप्त का धर्म और उनकी की मृत्यु :
चंद्रगुप्त मौर्य एक धर्मनिरपेक्ष शासक थे। उन्होंने सभी धर्मों के लोगों को समान अधिकार दिए। लेकिन व्यक्तिगत रूप से वे जैन धर्म के अनुयायी थे।
चंद्रगुप्त ने अपने जीवन के अंत में जैन धर्म की दीक्षा ली और श्रवणबेलगोला में उपवास करके अपना शरीर त्याग दिया। यह घटना 297 ईसा पूर्व में हुई थी।
चंद्रगुप्त मौर्य की मृत्यु के बाद उनका पुत्र बिंदुसार मौर्य उनके उत्तराधिकारी बने।
चंद्रगुप्त मौर्य के धर्म को लेकर कुछ मतभेद हैं। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि वे जैन धर्म के अनुयायी थे, जबकि कुछ का मानना है कि वे हिंदू धर्म के अनुयायी थे। लेकिन अधिकांश इतिहासकारों का मानना है कि वे एक धर्मनिरपेक्ष शासक थे, जिन्होंने सभी धर्मों का सम्मान किया।
FAQ (पूछे जाने वाले सवाल):
1. चन्द्रगुप्त मौर्य के पत्नी का नाम क्या था?
चन्द्रगुप्त मौर्य के पत्नी का नाम दुर्धरा था।
2. चन्द्रगुप्त का पुत्र जो बाद में उतराधिकारी भी हुआ, क्या नाम था?
चन्द्रगुप्त के पुत्र का नाम बिंदुसार था , उतराधिकारी के रूप में उन्होंने अपने पिता की विरासत को अक्षुण बनाये रखे थे ।
3. क्या चन्द्रगुप्त मौर्य ने सिकंदर को हराए थे ?
चन्द्रगुप्त मौर्य का सामना कभी सिकंदर से नहीं हुआ था बल्कि सिकंदर का उतराधिकारी सेल्यूकस को पराजित किए थे ।
4.चन्द्रगुप्त किस धर्म के अनुयायी थे?
इतिहासकारों के अनुसार वे शुरुआत में हिन्दू थे जो बाद में जैन धर्म अपना लिए।
5. चन्द्रगुप्त को जैन धर्म की दीक्षा किन्होने दिए थे?
जैन मुनि भद्रबाहु ने चन्द्रगुप्त को जैन धर्म की दीक्षा दी थी ।
निष्कर्ष:
चन्द्रगुप्त मौर्य एक महान सम्राट थे जिन्होंने भारत को एकता और समृद्धि प्रदान की। उनके शासनकाल में, भारत एक शक्तिशाली साम्राज्य बन गया, जिसने विश्व इतिहास पर महत्वपूर्ण प्रभाव डाला।